ओबीसी आरक्षण पर होने वाली राजनीति में फंसी

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Vivratidarpan.com भोपाल-  ओबीसी पर होने वाली राजनीति एक बार फिर से केंद्र में रही है। हाल में ओबीसी से जुड़े सुप्रीम कोर्ट के कुछ फैसले आए, जिसके बाद से राजनीति तेज हो गई है। पहले से ही कई मुद्दों पर घिरी केंद्र की मोदी सरकार को इसने चिंता में ला दिया है। उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले इन मसलों के सामने आने के बाद बीजेपी डैमेज कंट्रोल के मोड में गई है। उधर विपक्षी दल इन मुद्दों को हवा देने की पूरी कोशिश कर रहे हैं। दरअसल एक साल तक चले किसान आंदोलन के दबाव से निकली केंद्र सरकार अभी कोई नया विवाद नहीं चाहती है। साथ ही ओबीसी बीजेपी के सबसे मजबूत वोट बैंक के रूप में उभरे हैं। ऐसे में वह इनके मसले पर किसी तरह की कोताही नहीं बरतना चाहेगी। कुल मिलाकर चुनावी दंगल से पहले सर्द मौसम में ओबीसी राजनीति की तपिश महसूस की जा सकती है और अगले कुछ दिनों में सरकार का दांव और विपक्षी दलों का वार देखने को मिल सकता है।

पिछले कुछ दिनों के अंदर सुप्रीम कोर्ट के फैसलों ने केंद्र सरकार और बीजेपी को मुसीबत में डाला। सबसे पहले सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद मध्य प्रदेश पंचायत चुनाव में ओबीसी आरक्षण पर रोक लगाई गई। वहां पंचायत चुनाव में 13 फीसदी सीटें ओबीसी के लिए आरक्षित थीं। इससे पहले महाराष्ट्र में भी ओबीसी को 27 फीसदी आरक्षण देने के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने झटका दिया था। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट में ओबीसी के लिए क्रीमी लेयर तय करने के मुद्दे पर भी सुनवाई हो रही है। केंद्र सरकार ने ओबीसी को राहत देते हुए मौजूदा क्रीमी लेयर को 8 लाख रुपये से बढ़ाकर 12 लाख रुपये करने का प्रस्ताव रखा है। इसी कारण नीट-पीजी काउंसलिंग प्रक्रिया शुरू नहीं हो पा रही है।

इन सबके बीच सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद केंद्र सरकार हरकत मे आई तो निकाय चुनाव में आरक्षण हटाने को लेकर विपक्षी दल भी केंद्र सरकार को घेरने लगे हैं। केंद्र सरकार ने संकेत दिया है कि वह इस आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में रिव्यू याचिका डालेगी। केंद्र सरकार की आशंका है कि दो राज्यों में निकाय चुनाव में आरक्षण समाप्त होने के बाद दूसरे राज्यों पर भी इसका असर होगा, जहां ओबीसी को आरक्षण मिला है। विपक्षी दल इसे ओबीसी आरक्षण के समाप्त होने की दिशा में बढ़ाया गया कदम बताकर सरकार को घेर रहे हैं।

ऐसे में केंद्र सरकार रिव्यू याचिका डालकर संदेश देना चाहेगी कि वह इस निर्णय से सहमत नहीं है और ओबीसी आरक्षण के साथ है। सरकार के अंदर इस मसले पर कानूनी सलाह ली जा रही है। साथ ही पिछली बार जिस तरह एससी-एसटी कानून पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद केंद्र सरकार की ओर से रिस्पॉन्स देने में देरी हुई, वैसी गलती सरकार इस बार नहीं दोहराना चाहेगी। 2018 में जब देर हुई थी, तब इसका असर मध्य प्रदेश और राजस्थान में हुए विधानसभा चुनावों में दिखा था, जिसमें बीजेपी को नुकसान उठाना पड़ा था। ऐसे में सरकार निकाय चुनाव में आरक्षण को लेकर संविधान संशोधन तक का रास्ता अपनाने के विकल्प पर विचार कर रही है। चूंकि संसद के मौजूदा सत्र में इससे जुड़ा बिल लाने का वक्त नहीं बचा, इसलिए सरकार ऑर्डिनेंस के रास्ते आगे बढ़ने के विकल्प को भी टटोल सकती है। लेकिन सरकार के सूत्रों के अनुसार पहले रिव्यू याचिका देकर कोर्ट का रुख देखा जाएगा।