नारी नहीं हारी - कालिका प्रसाद
भगवान की सन्तान है,
दोनों नर और नारी !
ईश्वर ने दोनों में ही,
शक्ति भरी है सारी।
समाज ने तो अन्तर कर दिया,
एक को तो ताकतवर माना !
दूसरे को क्यों माना है बेचारी,
सबला को अबला क्यों माना।
आबादी तो बराबर की है,
पदो में कम क्यों भागीदारी !
कार्य अधिक करने पर भी,
समझ नहीं पायी बेचारी।
दो आँखों का सिद्धांत ,
वर्तमान में भी है जारी !
एक आँख पुरुष है तो,
दूसरी आँख। है नारी।
घर ,कार्यालय, समाज में भी,
सर्वत्र भेद अभी है जारी !
भ्रूण हत्या तो आज भी,
फिर क्यों है जारी।
परिस्थितियों ने तुडवायी है,
नारी की चार दीवारी !
अब घर से बाहर निकाल कर,
नारी ने कई कीर्तिमान बनाये।
सहनशीलता को हमने ,
समझा है उसकी कमजोरी !
अत्याचारों का क्रम आज भी,
वैसा ही क्यों है जारी ।
घर परिवार समाज में अभी भी,
नारी का संघर्ष है जारी !
कई दुख मिलने के बाद भी,
नारी ने नहीं हिम्मत है हारी।
इतने कष्टों के बाद भी,
नारी ने हिम्मत को नहीं हारी !
अवसर मिलते ही नारी ने,
ऊँची छलांग है लगाई।
अब नारी की शक्ति को पहचनो,
न लो उसकी धौर्य की परीक्षा!
अबला का अर्थ उसने बदला है,
सबल बनने का हुनर सीख लिया।
- कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार, रुद्रप्रयाग,उत्तराखंड