जब तुम्हें सोचते हैं - प्रीति आनंद

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जब तुम्हें सोचते हैं, हवा का कोई झोंका बहता है,

चुपके से कानों में आ-आकर कोई ये कहता है।

चलो कहीं दूर चलें, हम नील गगन के छाँव तले,

जहाँ कल-कल करती नदियाँ सागर से जा मिले।

भौरों की गुंजन और फूलों की हो मोहक मुस्कान,

पपीहे की हुक, कोयल की कूक में खोया हो जहान।

बजे राग-रागिनी श्वेत निर्झर से, गाएँ झींगुर मधुर गान,

हरितमा चुनरी ओढ़े, धरा सुंदरी किये बैठी हो गुमान।

जैसे टिमटिमाते जुगनुओं से सजी हो साड़ी उसकी,

चांद हो सुशोभित मंगल टीका बन माथे पर उसकी।

झिलमिल सितारों से सजी हो सुहानी चांदनी रात,

भोर की सुनहरी किरणें लगे खुशियों की सौगात।

जहाँ गगनचुंबी पर्वत दें हमें सुर,सरगम और साज,

गाए हम तराना और बने वो हमारी सुरमयी आवाज़।

निस्तब्द्ध, निहारूँ मैं तुम्हें,तुम मुझ में ही खो जाओ,

भूल अपनी सारी व्यथा-कथा शांत चित्त हो जाओ।

असीम,अनंत आनंद से भरा हो अपना वो मधु-मिलन,

स्वर्ग सा हो सुखद तुम्हारा-हमारा  वो अटूट आलिंगन।

- प्रीति आनंद, इंदौर , मध्य प्रदेश