रिश्तों का मूल्य - कर्नल प्रवीण त्रिपाठी

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बना घुमंतू जीवन जिनका, उन आँखों में सपने हैं।

जिन राहों पर आगे बढ़ना, उन पर अक्षर लिखने हैं।1

पथराई आंखों से देखे, कोई वापस अब आये,

निपट अकेले छोड़ा है जब, कहने को सब अपने हैं।2

पहले कुनबा रेवड़ जैसा, साथ साथ सब चलते थे,

नई डगर पर चले गये ज्यों, नये दृश्य कुछ रचने है।3

एक आस फिर भी है मन में, कोई तो वापस आये,

चहल पहल होगी हर कोने, घर आँगन फिर सजने हैं।4

एक सीख लेनी हम सबको, सारे इससे गुजरेंगे,

रिश्तों को भरपूर जियें सब, बचे हुए दिन जितने हैं।5

- कर्नल प्रवीण त्रिपाठी, नोएडा, उत्तर प्रदेश