वो पहला प्यार था = पूनम शर्मा स्नेहिल 

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नादान सी उमर ,

ना जवानी लड़कपन ।

एहसासों का भंवर ,

जिंदगी में हिलोरे ले रहा था।

हर तरफ सिर्फ खुशियां ही खुशियां,

नजर आती थी।

किस बात की ,

इसकी तो खबर भी नहीं थी दिल को।

पर हां खुश बहुत रहता था ।

ये सोच कर कि ना जाने क्यों खुश है।

कभी चांद से बातें करना,

कभी फूलों से ,तो कभी सितारों से ,

झरने नदियां सभी में ,

एक अपनापन लगता है ।

मानों सभी आगोश में लेने को बेकरार है ।

या मैं सभी में खुद को समा जाने को ,

कैसा था वो एहसास।

पर हां वो वक्त था कुछ खास।

न शब्दों का पता ,

न भावनाओं का ठिकाना ,

पर फिर भी बहुत खूबसूरत था।

हर एक एहसास ।

बेवजह मुस्कुराना ,

कभी खुद से ही नजरें चुराना ।

हो जाता था जाने क्यों ,

दिल देख कर खुद को ही दीवाना ।

एहसासों के बीच कहीं गुदगुदाती था कोई मुझे।

बड़ा मुश्किल था ,

उस वजह को समझ पाना ।

कितना नादान होता है ना वो वक्त ,

जो बेचैन भी होता है ,

और बेचैनी का सबब भी नहीं जानता।

एहसास-ए-मुहब्बत का,

बस इतना सा था फ़साना।

बेचैन रहती थी धड़कन ,

था मुश्किल कुछ भी समझ पाना।

दिल जानता था बस बेवजह मुस्कुराना।

सोचकर कोई चेहरा यादों में खो जाना।

लबों पर हर वक्त कोई तरन्नुम गुनगुनाना।

महफिल में तन्हा और तन्हाई में महफ़िल सजाना।

बड़ा नासमझ था सच में वो गुजरा जमाना।

®️पूनम शर्मा स्नेहिल, गोरखपुर , उत्तर प्रदेश