मधुर स्मृतियाँ..(लघुकथा) = रीतू गुलाटी  

 | 
pic

हमारी शादी की 25  वी सालगिरह थी।  बहुत दिन से पतिदेव की इच्छा थी कि घर मे कोई मांगलिक कार्य हो, तभी मैने सुझाव दिया! क्यो ना सालगिरह के दिन हवन,पूजा आदि रखवा दे!, हम इसी तरह हंसते-खेलते अपना जीवन गुजारें! पतिदेव की सहमति से मैने पूजा रखवा दी। एक छोटी सी पूजा मे सबको  बुलाना सम्भव नही था! क्योंकि हम सरकारी आवास मे रहते थे। कैम्पस मे जब कभी किसी के घर भी पूजा पाठ होता तो सब मिलकर उसका आनंद लेते। ऐसे माहौल मे हमारा दाम्पत्य जीवन अपने दो प्यारे बच्चों के संग फल फूल रहा था! और आज पूजा के कारण घर मे चहल पहल बढ गयी थी! हम दोनो गठबंधन कर पूजा मे बैठ चुके थे। पूजा मे बैठे-बैठे मैं अतीत मे पहुंच गयी, पुरानी घटनाएं चलचित्र की भाँति मेरे सामने नाचने लगी।....अभी मैं मात्र 17 बरस की ही थी और मेरे पिता जी को मेरे विवाह की चिन्ता सताने लगी थी। स्नातक के प्रथम वर्ष मे दाखिला लेना ही था कि पिता ने अपना फैसला सुना दिया कि आगे की पढाई बंद। बेटी : मेरा बहुत मन है आगे पढने का! पिताजी:और मेरी जिम्मेवारी का क्या? तुम्हारी मां तो इस दुनिया से चली गयी,पता नही, मै और कितने दिन जियूँगा। मैं अभी शादी नही करूंगी! मै पढ लिख कर अपने पैरों पर खडी होना चाहती हूं। पिता जी:अरे, किसने रोका है? शादी के बाद भी तो पढ सकती हो,कम से कम मुझे तो अपनी ज़िम्मेवारी पूरी करने दो। समय पंख लगाकर उडता रहा........पिताजी चुपके से रिश्ते ढूंढते रहे। मैने अपनी सहेली संग स्नातक प्रथम वर्ष मे दाखिला ले लिया। तभी एक दिन दरवाजे की घंटी बजी! कौन आया होगा इस समय? कुछ सोच कर मैं दौडती हुई नीचे आयी,ज्यो हीं मैने दरवाजा खोला,एक अधेड उमर की औरत को, अपने बेटा , बेटी व बडी बहू के संग खडे पाया! असल मे ! गोरी, चिट्टी देह, खुले लहराते बाल, सुन्दर नैन नक्श, उस पर मुस्कुराता चेहरा। एक  पल के लिये चौंक कर लडके ने अपनी मां से इशारे मे पूछा....क्या यही लडकी है जिसे हम देखने आये है? मां ने भी इशारे से पूछा:तुझे पसन्द तो है ना? बेटे ने हंसते हुऐ"हां"मे गर्दन हिलाई। तभी मेरे पिता जी बोले..जल्दी से कपडे बदलकर तैयार हो जाओ..लडके वाले तुम्हे देखने आये हैं।

कुछ ही दिन मे मेरी सगाई तय हो गयी! और 17 दिन मे ही शादी भी हो गयी। भाग्य का फैसला मान मैं खुशी -खुशी ससुराल आ गयी थी। घर मे मैं केवल पति की पसन्द बनकर रह गयी! उनका प्यार व दुलार मेरे अंदर एक नयी उमंग भर देता, शादी के चार दिन बाद हम दोनो की राहें बदल गयी थी।  मैं अपने कॉलेज जाने लगी, और वो अपनी डयूटी पर नयी नयी शादी  का उत्साह फीका पडने लगा था। कई बार पतिदेव रात की डयूटी बीच मे ही छोडकर लौट आते,अपने प्यार को पाने कि तमन्ना इन्हें भी बैचैन कर देती! नयी नयी शादी मे बिछोह अहसनीय लगता। पतिदेव रात दिन की डेली पसैन्जरी से तंग आ गये थे। हरदम यही सोचते कब तक डैली पसैन्जरी कर पायेगे? तभी पति की परेशानी का हल मैने निकाला,और फैसला लिया ,जिस गृहस्थी को हमने कल भी मिलकर चलाना है तो आज ही क्यों ना अभी उठा लिया जाये! ये सोच मैने इनके संग एक पिछडे से गांव मे ही बसने का फैसला कर लिया। यद्यपि एक शहरी लडकी के लिये ये एक कठिनाई भरा कदम था पर पति के प्यार व सहयोग के आगे मुझे सब मंजूर था,शौचालय के लिये खेत मे लोटा लेकर जाना सबसे बडी समस्या थी! बाद मे मैने अपनी छूटी हुई पढाई को पूरा करने की सोची,सहचर की मदद किस तरह कर पाऊगी ये विषय अब मुख्य था,आय कम थी खर्चे बढ रहे थे, निकट भविष्य मे बच्चो का कैरियर बनाने के लिये पति को सहयोग करना अब जरूरत बन गया था। अत:मैने भी आफिस ज्वाइन कर लिया और प्राईवेट तोर पर फार्म भरकर बी०ए व एम०ए कर लिया था! इतने बरस कैसे बीत गये? पता ही नही चला!" अब यह आखिरी आहुति सब डालें" पंडित जी के इस जोर से कहे वाक्य से मैं अतीत से बाहर आ गयी, सभी के मुबारकवाद कहने के साथ ही मेरी पूजा सम्पन्न हो गयी।

= रीतू गुलाटी. ऋतंभरा,हिसार , हरियाणा