गीत = अनिरुद्ध कुमार
कैसे दिल का दर्द बता दे, यह दुनिया सौदाई।
सबके दिल का चैन चुराते, कितने ये हरजाई।।
रोज करें हैं तेरा मेरा,
माया के फंदे का फेरा।
कोई ना समझाने वाला,
बादल मन में लगे घनेरा।
देख अलग है सोंच जहाँ की, करते सदा बुराई।
सबके दिल का चैन चुराते, कितने ये हरजाई।।
दान धर्म की बातें करते,
दुविधा में हीं जीते मरते।
बेमेल सूरत और सीरत,
चिकनी चुपड़ी बातें करते।
अपने मतलब में दीवाना, समझें इसे कमाई।
सब के दिल का चैन चुराते, कितने ये हरजाई।।
रंग भेद की तूती बोले,
भय के मारे इंसा डोले,
जीत हार सब पर है हाबी,
मानव सहमा काँपे रोले।
मानवता दिन रात बिलखती, कैसी चलन चलाई।
सबके दिल का चैन चुराते, कितने ये हरजाई।।
आदर्शों की कौन सोंचता,
लोभी मानव लगता अंधा।
दाव पेंच नित नया बखेड़ा,
जागे सोये करता धंधा।
चिंतित मनवा बोल न पाये, अब तो राम दुहाई।
सबके दिल का चैन चुराते, कितने ये हरजाई।।
= अनिरुद्ध कुमार सिंह, धनबाद, झारखंड।