कुछ दायित्व - कर्नल प्रवीण त्रिपाठी

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नेह का अनमोल दीपक यूँ जलाना चाहिये।

आँधियों से लड़ सके वह गुर सिखाना चाहिये।1

खोजता रहता हमेशा गुम हुए उस प्यार को,

यार को हमको बता कर दूर जाना चाहिये।2

चांदनी रातें हृदय में भाव मधुरम से भरें,

यामिनी में साथ प्रियतम का निभाना चाहिये।3

चाँद यदि तन्हाइयों में रात भर चलता रहे,

तब सितारों को उसी के संग जाना चाहिये।4

बादलों की ओट में भी चाँदनी छुपती नहीं,

भेदने की जलद को हिम्मत जुटाना चाहिये।5

है यही बस प्रार्थना इन चाँद तारों से सदा,

प्रेम में भटके पथिक को पथ दिखाना चाहिए।6

प्यार है अनमोल इसकी हम सदा पूजा करें,

दिलरुबा के साथ ही जीवन बिताना चाहिये।7

- कर्नल प्रवीण त्रिपाठी, नोएडा, उत्तर प्रदेश