श्री राम यज्ञ- (60वीं समिधा) - जसवीर सिंह हलधर
जय शब्द निबंधा देवी की ।
जय छंद प्रबंधा देवी की ।।
अब चली अंत की ओर कथा ।
तोड़े लक्ष्मण की डोर कथा ।।1
नाम एक है कथा बहुत हैं ।
राम एक है व्यथा बहुत हैं ।।
ब्रह्म देव संदेशा लाया ।
काल स्वयं मिलने को आया ।।2
दोनों में अब गुप्त मंत्रणा ।
खंडन पर है मौत यंत्रणा ।।
ऋषि दुर्वाषा भी आ धमके ।
क्रोधित हो लक्ष्मण पे चमके ।।3
मंथन हुआ बीच में खंडित ।
लक्ष्मण हुए मौत से दंडित ।।
राह दूसरी देश निकाला ।
झेल न पाया लखन निराला ।।4
आदेश राम का आया है ।
आशीष राम से पाया है ।।
जीवन यश लखन कमाया है ।
सरयू में जाय समाया है ।।5
अब राम हुआ रीता रीता ।
लक्ष्मण भी नहीं, नहीं सीता ।।
गमगीन मौन अब राम हुए ।
लक्ष्मण अनुबंध विराम हुए ।।6
क्यों मुझसे ऊब गया भाई ।
सरयू में डूब गया भाई ।।
निःशब्द मौन हैं नारायण ।
अंतस बैठे सीता लक्ष्मण ।।7
क्यों लक्ष्मण देश नहीं छोड़ा ।
जीवन से क्यों नाता तोड़ा ।।
क्या दुष्ट हो गया रघुराई ।
क्यों रुष्ट हो गया तू भाई।।8
अब सूख गयी मेरी खेती ।
मुट्ठी में सरयू की रेती ।।
तन कांप रहा मन है रीता ।
लक्ष्मण लक्ष्मण सीता सीता ।।9
तू कहाँ खो गया रे लक्ष्मण ।
तू कहाँ सो गया रे लक्ष्मण ।।
पावक में नहीं जला लक्ष्मण ।
सरयू की गोद गला लक्ष्मण ।।10
- जसवीर सिंह हलधर, देहरादून