श्री राम यज्ञ - (56वीं समिधा) - जसवीर सिंह हलधर 

 | 
pic

हे अक्षर वंदन की देवी ।

हे शब्द प्रबंधन की देवी ।।

राम कला मुझको दिखला दी ।

राम कथा मुझसे लिखवा दी ।।1

हनुमत सीता जी को लाये ।

यह देख राम जी हर्षाये ।।

तपकर प्रबुद्ध हुई सीता ।

अगनी में शुद्ध हुई सीता ।।2

लंका में मान विभीषण का ।

पूरा यशगान विभीषण का ।।

जग में सम्मान विभीषण का ।

ऊंचा है ज्ञान विभीषण का ।।3

बेसक राघव का सहयोगी ।

पर पूजा कभी नही होगी ।।

घर का भेदी कहलायेगा ।

सम्मान नहीं मिल पायेगा ।।4

अब यान विभीषण सजवाये ।

नारायण उसमें बैठाये ।।

अब वाम अंग बैठी सीता ।।

पीछे लक्ष्मण हनुमत मीता ।।5

अब हर्षोल्लास अयोध्या में ।

है मौका खास अयोध्या में ।।

दीपों की सजी हुई माला ।

रघुनंदन घर आने वाला ।।6

घनघोर तिमिर छलते दीपक ।

जगमग जगमग जलते दीपक ।।

पुष्पक विमान ज्यों ही उतरा ।

जनगण सैलाब बड़ा उमड़ा ।।7

हैं भ्राता भरत प्रतीक्षा में ।

शत्रुघन साथ समीक्षा में ।।

हरि ने धरती पर पांव रखा ।

अपनी मांटी का स्वाद चखा ।।8

लक्ष्मन ने क्रिया दोहराई ।

पीछे उतरी सीता माई ।।

आशीष भरत ने प्राप्त किया ।

कुल का वनवास समाप्त किया ।।9

अब गले मिले चारो भाई ।

सब देख रहीं तीनों माई ।।

तीनों से हरी आशीष लिया ।

चरणों को छूती साथ सिया ।।10

जसवीर सिंह हलधर, देहरादून