श्री राम यज्ञ - (48वीं समिधा) -  जसवीर सिंह हलधर

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जय हंसवाहिनी  मैया की ।

ये कथा भरत के भैया की ।।

अब रण में नाच रही चंडी ।

लंका दिखती है बनखंडी ।।1

रस अलंकार से दूर कथा ।

रण कौशल से भरपूर कथा ।।

अब रण का हाल दिखाता हूँ।

आगे की कथा सुनाता हूँ ।।2

चिंगारी निकले बाणों से ।

खेले वीरों के प्राणों से ।।

अंगारे बरस रहे रण में ।

मरते हैं योद्धा क्षण क्षण में ।।3

बाणों से आग बरसती है ।

प्राणों की आस तरसती है ।।

तीरों से तीर निकलते हैं ।

वीरों को तीर निगलते हैं ।।4

ज्यों चंद्रहास चलती रण में ।

वानर मरते तब क्षण क्षण में ।।

कौदण्ड राम शर उगल रहा ।

खल सेना के सर निगल रहा ।।5

पहले दिन युद्ध विराम हुआ ।

दोनों दल का विश्राम हुआ ।।

पर हार नहीं माना रावण ।

पक्का द्राविड़ सच्चा ब्राह्मण ।।6

दूजे दिन युद्ध हुआ जारी।

फिर शुरू हुई मारा मारी ।।

बाणों की गति को भांप रहीं।

सागर की लहरें कांप रहीं ।।7

तलवार बदलता है रावण ।

हथियार बदलता है रावण ।।

राघव भी अस्त्र बदलते हैं ।

हमले को शस्त्र बदलते हैं ।।8

खल दल में जारी है हलचल ।

दिखलाता कौशल वानर दल।।

जब गदा घूमती हनुमत की ।

किस्मत फूटे खल दलपत की ।।9

तेरह दिन युद्ध हुआ रण में।

शोणित का कीचड़ प्रांगण में ।।

रावण ने मानी हार नहीं ।

वो मरने को तैयार नहीं ।।10

 -  जसवीर सिंह हलधर, देहरादून