श्री राम यज्ञ - (43 वीं समिधा) - जसवीर सिंह हलधर

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जय माँ शब्द प्रबंधन देवी ।
अक्षर छंद निबंधन देवी ।।
राघव मन पर छायी करुणा ।
गंगा धार समायी वरुणा ।।1

शीश मेघ का देख सुलोचन  ।
धार अश्रु भर लाये लोचन  ।।
कैसे मरा मेघ बलशाली ।
सोचे इंद्रजीत घरवाली ।।2

शीश उछल गोदी में आया ।
अट्टहास कर हँसता पाया ।।
सारा घटनाक्रम समझाया ।
भ्रह्मस्त्र भी काम न आया ।।3

मेघनाद ने किया विवेचन ।
ध्यान लगाकर सुने सुलोचन ।।
रघुवंशी कुनबे का पौधा ।
चौदह वर्ष जगा है योद्धा ।।4

मुझे श्राप था जगदम्बा का ।
अस्त्र निष्क्रय होगा ब्रह्मा का ।।
अस्त्र देव का काम न आया ।
ऐसी नारायण की माया ।।5

शीश साथ ले चली सुलोचन ।
सत्य तथ्य का कर आलोचन ।।
साथ कंत के चिता लगायी ।
सती सुलोचन अग्नि समायी ।।6

लंका पूरी शोकाकुल है ।
मेघनाद की माँ व्याकुल है ।।
अहंकार ही बना पनौती ।
रावण सम्मुख बड़ी चुनौती ।।7

आगे अभी कथा है जारी ।
अगली अहिरावण की बारी ।।
वह पाताल देश का राजा ।
रावण के संकट में साझा ।।8

गयी सूचना अहिरावण को ।
मदद जरूरी अब रावण को ।।
अहिरावण रावण लंका को धाया ।
कुनबा सारा मुर्दा पाया ।।9

रो रो बिलख रहा है रावण ।
बतलाता झगड़े का कारण ।।
झगड़े का कारण है सीता ।
नारायण की परम पुनिता ।।10
- जसवीर सिंह हलधर, देहरादून