श्री राम यज्ञ - (28वीं समिधा) - जसवीर सिंह हलधर

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नांच रही है समर भवानी ।

मांग रहे खल योद्धा पानी ।।

मौत हो रही है क्षण-क्षण में ।

रक्त घुला धरती कण-कण में ।।1

मरे युद्ध में नामी योद्धा ।

खल कुनबे के खास पुरोधा ।।

रावण उठा छोड़ सिंहासन ।

धधक उठी है ज्वाला तन मन ।।2

दैहिक शस्त्र साथ में लेकर ।

दैविक अस्त्र साथ में लेकर ।।

रण भू में आ गया घमंडी ।

कुनबे को खा गया घमंडी ।।3

मूंछें ऐंठ रहा पाखंडी ।

रथ पे बैठ रहा पाखंडी ।।

लंका दिखती है वनखंड़ी ।

देख रही बैठी रण चंडी ।।4

राजा सुग्रीव आये सम्मुख ।

मोड़ा रावण के रथ का रुख ।।

हुआ युद्ध दोनो में भीषण ।

भारी पड़ा युद्ध में रावण ।।5

लहूलुहान हुआ रण स्थल ।

सुग्रीव हुए युद्ध में घायल ।।

लक्ष्मण ने अपना रुख मोड़ा ।

बाण तुरत रावण पर छोड़ा ।।6

रण चंडी गयी जाग समर में ।

लगी बरसने आग समर में ।।

बाणों की गति देखे क्षण-क्षण ।

रावण समझ गया यह लक्ष्मण ।।7

युद्ध हुआ दोनों में भीषण ।

देख रहे ये दृश्य विभीषण ।।

ज्यों-ज्यों बाण चलें लक्ष्मण के ।

दस दस शीश हिलें रावण के ।।8

बीस भुजाओं वाला द्रावड ।

दस-दस बाण छोड़ता रावण ।।

लक्ष्मण धनु टंकार निराली ।

रावण बहुत बड़ा बलशाली ।।9

ज्यों ज्यों दोनों तीर चलावें ।

रण में अग्नि पिंड बरसावें ।।

दामिनी चमक चमक हर्षाये ।

काल कपाली खड़ी लखाये ।।10

-जसवीर सिंह हलधर, देहरादून