नेह के बीज = किरण मिश्रा
Jun 4, 2021, 23:19 IST
| अधूरी ख्वाहिंशे लेकर,
हसीं जख्मों के साये से
नेह के बीज बोती हूँ
उगाती ख्वाब पराये से।
कभी फूलों से ले खुशबू ,
कभी भौरों से ले गुनगुन
पिरोती स्वप्न सेहरा हूँ,
रंग तितलीे किराये से।
लहर यादों की मैं चंचल,
बहूँ निर्झर सी मैं कलकल
नदी का रूप धरती हूँ,
बहाती दर्द साये से ।
रंग सविता से ले अरूणिम,
मलूँ मैं गाल पर लाली ,
रचूँ मैं छन्द नित नूतन,
गीत कोयल के गाये से।
कभी मैं चाँदनी मद्धिम,
कभी चकवी सी मैं विरहिन,
पपीहरा पीर पीती मैं,
तरस मेघा के खाये से !
= किरण मिश्रा स्वयंसिद्धा, नोएडा