यथार्थ - जया भराड़े बड़ोदकर
जीवन पथ है बड़ा कठिन,
पग-पग कांटे बिछे हुए हैं,
चारो ओर से विपदा छाई,
मनुज मनुज का दुःख न समझे,
बम धमाके गोला तोप उड़ाये,
बच्चे माता बहन की आबरू लूटे,
क्या है दुनिया ये किधर को जाए,
इंसानियत रूठ गई क्यूँ ?
प्रेम दया सब सुख गये क्यूँ ?
धन के पीछे भाग रहे सब,
रिश्ते-नाते छूट गए सब,
जानी दुश्मन में बदल गए,
माता पिता को वृद्धा श्रम पहुँचाया,
घर-घर युद्ध का मैदान बनाया,
समय ने आज क्या दिन दिखाया
ईश्वर पर से भी विश्वास उडाया,
नही अब तक रण बहुत दिखाया,
छल कपट से क्यूँ भर गया,
ये तन मन ,
आ भगवान अब तू ही आजा,
इंसान को तू इंसान दिखा जा,
प्रेम शांति का पाठ पढ़ा जा,
क्यूँ तू आँखे मूँदे पड़ा है,
आज तू कहाँ है किधर गया है ?
एक तू ही तो है तारनहार,
इंसानो को संकट से निकाल,
फिर से बस जाए दुनिया प्यारी,
सुबह शाम सुख चैन की बंसी बजाए,
तुझ संग पूरा जीवन बीत जाये,
पूरे विश्व में हर कोई दया,
प्रेम और खुशी बरसाए।
- जया भराड़े बडोदकर, कमोथे, नवी मुंब्ई (महाराष्ट्र)