राम यज्ञ - (51वीं समिधा) - जसवीर सिंह हलधर ​​​​​​​

 | 
pic

शक्ति साधना की समिधा है ।

भक्ति वंदना की समिधा है ।।

जामवंत हरि को समझाते ।

कारण में ही हल दिखलाते ।।1

क्या रावण शक्ति समाहित है ।

माँ की अनुरक्ति प्रवाहित है ।।

क्या तुमने यह अहसास किया ।

चंडी से युद्धाभ्यास किया ।।2

जान गए यदि सच्चा कारण ।

शक्ति आपको करनी धारण ।।

चंडी का जाप करो रघुवर ।

अपने संताप हरो रघुवर ।।3

वो साथ दैत्य का छोड़ेगी ।

वो हाथ सत्य से जोड़ेगी ।।

अन्याय नहीं भाता उसको ।

पर्याय नहीं खाता उसको ।।4

कहते कहते हो रहे विकल ।

है जामवंत आंखों में जल ।।

करो आप भी शक्ति समाहित ।

माता की अनुरक्ति प्रवाहित ।।5

शक्ति सिद्ध ना होवे जब तक ।

राघव युद्ध करो मत तब तक ।।

नयी शक्ति लाओ बाणों में ।

नयी शक्ति लाओ प्राणों में ।।6

लक्ष्मण हों सेना के नायक ।

यूथपती सब बनें सहायक ।।

महावीर पर्यवेक्षक होंगे ।

और सुग्रीव निरीक्षक होंगे ।।7

गुप्त मंत्रणा करें विभीषण ।

मेरा हो संयुक्त समीक्षण ।।

सघन समीक्षा रण की होगी ।

कठिन परीक्षा सब की होगी ।।8

जामवंत जो युक्ति सुझाई ।

परामर्श माने रघुराई ।।

कुछ समय राम स्तब्ध रहे ।

कुछ जामवंत से शब्द कहे ।।9

बोले यह ठीक कहा प्रियवर ।

रण चंडी यज्ञ करें सत्वर ।।

अब ध्यान शक्ति का खीचूँगा ।

अब प्राण भक्ति से सीचूँगा ।।10

- जसवीर सिंह हलधर, देहरादून