कविता - (श्री राम समाधि) - जसवीर सिंह हलधर

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आयाम भक्ति के विविधा हैं ।

परिणाम शक्ति के विविधा हैं ।।

राघव समाधि की समिधा है ।

"हलधर" के मन में दुविधा है ।।1

सागर जिसके पग में पाया ।

भूधर उड़कर लंका आया ।।

तूफान बबंडर के मालिक ।

मैदान समंदर के मालिक ।।2

जगती से कैसे ऊब रहे ।

सरयू में जाकर डूब रहे ।।

मर्दन से घबराई सरयू ।

गर्दन से टकराई सरयू ।।3

दो नील कमल बिखरे जल में ।

दो नील कमल निखरे जल में ।।

राजीव नयन दिखते जल में ।

त्रिलोक सयन दिखते जल में ।।4

अब डूब रही सारी काया ।

लहरों पर सीता की छाया ।।

सरयू सागर सी दीख रही ।

हरि से हरि हरना सीख रही ।।5

मानो पानी में आग लगी ।

सारी प्रजा उठ जाग भगी ।।

दिनकर पानी में डूब रहा ।

रघुवर धरती से ऊब रहा ।।6

सरयू भी कांप रही थरथर ।

राजीव नयन उभरे ऊपर ।।

दो दीप जल रहे सरयू में ।

जग दीप चल रहे सरयू में ।।7

हाथों में पुष्पक माल लिए ।

स्वागत में पूजा थाल लिए ।।

वैदेही लहरों पर आयी ।

दुनिया ने देखी परछायी ।।8

ज्योयिर्मय अब आकाश हुआ ।

आलौकिक बृहद प्रकाश हुआ ।।

लक्ष्मी का रूप धरे सीता ।

असली प्रारूप भरे सीता ।।9

अब लुप्त हुए राजीव नयन ।

ज्योतिर्मय रूप लिए भगवन ।।

अब धरती से जगदीश चला ।

युगधर्म सिखाकर ईश चला ।।10

- जसवीर सिंह हलधर , देहरादून

उत्तराखंड (9897346173)