जन-जन का होवे उद्धार - अनिरुद्ध कुमार
धरती पहिर चुनर सतरंगी,
सज श्रृंगार किये है ठार।
अंबर विहस रहा मस्ती में,
माता जी आयेंगी द्वार।
चारों तरफ बहारें छाई,
बन-ठन के जन-जन तैयार।
जगतारिणी विराजे आकर,
स्वागत में दुखिया लाचार।
उत्साहित मन नैन पसारे,
मुख से निकसे है जयकार।
विपदा मिटे नमो माँ अम्बे,
पूजा हमरी हो स्वीकार।
श्रद्धा जगी अपार हिया में,
नतमस्तक सारा संसार।
अनुरागी हुलसित ललकारे,
ले कर में बैजंती हार।
ढ़ोलक मधुर बजा सब नाचे,
ध्यान लगी विपदा संहार।
कोई कहाँ दिखे दुनिया में,
माता जैसा पालनहार।
हे माँ दया कृपा जग चाहे,
पूज रहा सारा परिवार।
कष्ट असह्य मिटा माँ दुर्गा,
और न कोई देखनहार।
माता बिना कठिन है जीना,
कैसे हो यह बेड़ा पार।
अब तो कृपा करो हे माता,
जन-जन का होवे उद्धार।
अनिरुद्ध कुमार सिंह, धनबाद, झारखंड