परिणीता प्रेम = किरण मिश्रा 

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सुनो....
स्मृतियाँ ...
धू...धू कर जल उठती हैं,
जब..साँझ ढले..!
दिल में धड़क उठती हैं
मृदंग सी थाप ..!

नेत्र ..दहकते पलाश से 
रक्तिम होंठ...
अधखुले जलपाटल से..
मन आच्छादित..
घनघोर घटाओं सा...।

उतरती हैं..पलकों में 
जब तेरे यादों की सुनामी...
उर...का स्फुरण...
तन में ठन्डी बयार सा..छा जाता है...।

और...तब...
मैं रचती हूँ..

बसन्तमालिका सी..
तुम्हारे अहसासों से लिपटी...
अपने भावों के 
अवगुञ्ठन ले..
"परिणीता प्रेम" की प्रेमिल पटकथा....।"
= किरण मिश्रा #स्वयंसिद्धा, नोएडा