राष्ट्रीय शब्द और राग समूह ने आयोजित की लेखन कार्यशाला
vivratidarpan.com बड़ोदरा (गुजरात) राष्ट्रीय शब्द और राग समूह" की राष्ट्रीय अध्यक्ष श्रीमती रुपल उपाध्याय की अध्यक्षता में समूह के दो सक्रिय सदस्यों अंजू निगम एवम कंचन पांडेय द्वारा शिखरिनी छंद या जैपनीज ( हाइकु ) विधा पर आधारित 3 दिवसीय कार्यशाला आयोजित की गई। सर्व प्रथम समूह के सदस्यों को शिखरिनी छंद या जैपनीज ( हाइकु ) लिखने के नियम अवगत कराए गए।
1.यह एक वर्णिक छंद है, जिसमें तीन पंक्तियों में कुल सत्रह वर्ण होते हैं।
2.जिसकी पहली पंक्ति और तीसरी पंक्ति में 5-5 वर्ण युक्त शब्द होते हैं।
3.दूसरी पंक्ति में सात वर्ण युक्त शब्द होते हैं ।
4.पहली और तीसरी पंक्ति के तुकांत समान हों तो बेहतर है
5. प्रत्येक पंक्ति अपने आप में पूर्ण होनी चाहिए।
6.आधे अक्षरों की गिनती नहीं होती।
7.हाइकु का एक नियम महत्वपूर्ण है। हाइकु लिखते समय तुकबंदी भले ही न हो पाये मगर कवित्व का होना आवश्यक है। उसके अभाव में हाइकु की श्रेष्ठता नष्ट होती है।
समूह के सदस्यों को प्रोत्साहित करने के लिए अध्यक्ष रुपल उपाध्याय ने अपने द्वारा लिखित हाइकु समूह को समर्पित किए,
1 -
छल कपट,
नहीं कर सकती,
सच्ची ममता ।
2 -
दो ही कदम,
चल के, थक गया,
आज का युवा ।
कार्यशाला की आयोजक अंजू निगम एवम कंचन पांडेय ने अंतिम दिन समूह के सदस्यों को प्रोत्साहित करने के लिए प्रतियोगिता का आयोजन किया जिसमें समूह के सदस्यों ने उत्साहपूर्वक हिस्सा लिया। सभी के हाइकु बेहद स्तरीय रहे। इस विधा में नये सदस्यों ने भी हाइकु सीखने-समझने की तत्परता दिखाई। सत्ररह वर्ण में भावों की बारीकी अत्यंत आवश्यक है। इसी आधार पर चार सदस्यों के हाइकु श्रेष्ठ पाये गये। जो निम्नलिखित है:-
प्रथम -कविता तिवारी,
सुदूर गाँव,
स्वेदसिक्त पथिक,
ढूँढता छांव,
कटते पेड़,
देखे उदास मैना,
बैठ मुंडेर,
द्वितीय - सरिता गुप्ता,
प्रीत की नदी,
विश्वास का सागर ,
मधुमिलन,
सुरसरिता,
कल कल बहती,
प्यास बुझाती,
तृतीय - उपमा शर्मा एवं शोभा श्रीवास्तव
हरसिंगार,
झरे जो रात भर,
धरा महकी।
बीती है रात,
मुस्कुराईं किरनें,
आया प्रभात।।
- शोभा श्रीवास्तव
बिखरी ओस,
फूलों का तन काँपा,
चलीं हवायें
छाये नभ में,
घने घनेरे मेघ,
नाचे मयूर
अंत में प्रतियोगिता के परिणाम घोषित करते हुए दोनों आयोजकों ने अपने द्वारा लिखे हाईकु सदस्यों को समर्पित करते हुए उनका धन्यवाद ज्ञापित किया,
अंजू निगम,
सूरज बैठा,
दिन की मुंडेर पे,
धूप चुगता
शंख की ध्वनि,
गूंजे देव प्रांगण,
भक्ति जगाये
-कंचन पांडेय
कलाकार वो,
मिट्टी गढ़ बनाए ,
पूजनीय जो,
जलमग्न है,
लाखों जिंदगी यहाँ,
पानी नहीं है
समूह की यही विशेषता इसे अन्य सभी से श्रेष्ठ बनाती हैं कि समूह अपने सदस्यों को मंच, प्रकाशन, उपलब्ध करवाता है वो भी राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर दोनों पर भी आयोजित होते रहेगे।