नारी शक्ति = प्रीति पारीक
एक कली रहती थी जिस पीपल की छांव में,
खिलती हंसती मुस्कुराती थी अपनों की बाहों में।
सुन हिना की ख़ुशबूओं की एक कहानी थी बुनी,
थामा हाथ अपने पिया का वह शर्माती चल पड़ी।
सोचा ना था ऐसी राह थी खड़ी उसी की चाह में,
टूटे सपने छूटी आस भूले बिसरे गांव में।
खो दिए सारे स्वप्न उसने ,बिखर गई उसकी अदा,
सोचती ही रह गई रे ! विधाता तूने क्या किया।
एक दिन बैठी फिर वहीं, जाकर उसी छांव में ,
खोज निकाला वह कंटक, जो, चुभा था पांव में ।
ना डरु अब , ना रुकूं अब, मैं पहुंचेगी अपने मुकाम पे,
तू देख नारी शक्ति को अब, मैं उठूंगी शान से ।
तंग गलियों को छोड़ वह , फिर चली बड़े मान से,
वही पीछे हाथ जोड़े थे खड़े ,जो थे कंटक उसकी राह के,
जीती उसने जंग अपनी , अपने लक्ष्यों की धार से,
सब उसको बस देख रहे थे , झुके सिरों की कतार से।
= प्रीति पारीक, जयपुर, राजस्थान