नज्म - अंजू निगम
Updated: Jul 22, 2021, 14:33 IST
| हम अपना जख्म दिखाने कहाँ चले आये,
शिकवो की किताब खोले कहाँ चले आये|
वो शाम जब छु रही थी रात की दहलीज,
इस दिल की लगी बुझाने कहाँ चले आये|
वक्त ने हमे इस कदर कर दिया हैं मजबूर,
खुद से खुद को दूर कर कहाँ चले आये|
दरख्तों को हमी ने कर दिया हैं जमींदोज़,
पंरिदो को बेघर कर हम कहाँ चले आये|
दीवार बने खुद बैठे हैं अपनी ही राहो में,
अपनी ही बिगड़ी बनाने कहाँ चले आये|
गिरह किस कदर उलझ गयी हैं रिश्तों की,
बंधी ये गाँठे खोलने हम कहाँ चले आये|
गैर से रिश्तों की अब क्या करे शिकायत,
अपनो को बेगाना कर कहाँ चले आये|
- अंजू निगम, देहरादून, उत्तराखंड