मुक्तक - मधु शुक्ला

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रजनी कहे दिवस से, छोड़ो व्यस्त रहना।

जीवन जियो खुशी से, है व्यर्थ कष्ट सहना।

आराम चाहते तो, स्वीकार मित्रता लो,

शीतल लिबास पहनो, क्यों गर्म वस्त्र पहना।

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चुपके से मन मोहिनी, जाती पिय के पास।

देख ले कोई उसे, करती यही प्रयास।।

करती यही प्रयास,करे आवाज पायल।

सजनी बड़ी अधीर, लगे नैनों से घायल।।

लोकलाज का भार, समेटे जाती छुप के।

खटकाती है द्वार, सजनिया चोरी चुपके।।

मधु शुक्ला . सतना , मध्यप्रदेश .