मुक्तक (श्रृंगार) - ऋतू गुलाटी 

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प्रेम तेरा आँखो में सजाती।

फूलोँ से मैं श्रृंगार  बनाती।

कब से मैं खोई हूँ सपनो में

दिल तेरे को आज भाती।

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प्यार का आज बनाया घौंसला।

देता तेरा प्यार अब  हौसला।।

इसी आँचल मे सजता श्रृंगार -

बस किया है मैने ये फैसला।

- रीतूगुलाटी ऋतंभरा, हिसार..हरियाणा