गीत = जगत शर्मा

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अजब सियासत का उन्माद,
मुर्दे करते जिन्दावाद।
कौन सुने किसकी फरियाद
मुर्दे करते जिन्दावाद।।

निष्फल सांझ सकारे है, होंठों पर बस नारें हैं 
दिल में आग है बुझी हुई, मरे हुए अंगारे हैं 
फिर भी कहते इसके बाद
हम सब है पूरे आजाद।
अजब सियासत का उन्माद , मुर्दे करते जिन्दावाद।।...

जिनके थे हम आभारी, वह सब निकले व्यापारी
सांसो के सौदागर यह, कफन बेचते सरकारी
जय हो तेरी अवसरवाद,
 बेच रहा है तू अवसाद।
अजब सियासत का उन्माद मुर्दे करते जिन्दावाद।।

दुश्मन बन जाती खादी, कौन ले सिर पर यह व्याधि 
सच कहना अपराध हुआ,कहने वाला अपराधी
"जगत"करे किससे संवाद,
जर्जर जनतंत्री बुनियाद।
अजब सियासत का उन्माद,  मुर्दे करते जिन्दावाद।।
= जगत शर्मा, दतिया