कहमुकरी = अनुराधा पांडेय

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१*

अन्न दलित घर छककर खावे,

दस जनपथ से नाच नचावे,

बिना ब्याह के बना अभागा,

क्या सखि अन्ना?

धत् री रागा।।

२*

कली कली पर वो मँडराये

दिखे कचनार परम् हरषाय।

रूप देख मृदु कहे निहोरा,

क्या अलि भँवरा?

भक्क छिछोरा।।

३*

निशा-दिवा वो अश्रु दिखाए ।

जाने क्यों  खुद को भरमाए ?

पूस मास का लगता बादल ।

कह! सखि साजन ?

धत री! पागल ।

= अनुराधा पांडेय , द्वारिका, दिल्ली