औरत हूं  - सुनीता मिश्रा 

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औरत हूं कुछ भी कर सकती मैं....
इतिहास भी रच सकती हूँ मैं......!!!
रंग तितलियों में भर सकती हूँ मैं......                               
फूलो से खुशबू भी चुरा सकती हूँ मैं......
यूँ ही कुछ लिखते-लिखते 
इतिहास भी रच सकती हूँ मैं......
चाह लूँ तो उस आसमां को भी
छू सकती हूँ मैं.....
देख लेना कभी आसमां पर,
बिना पंखो के बादलो  के संग भी 
उड़ सकती हूँ मैं.....
दोस्त बन जाऊं जो किसी की.....
उसे हर मुश्किल से
जीतना सिखा सकती हूँ मैं.....
हमसफ़र बन जाऊं जो किसी की,
उसकी हर राह मंजिल बना सकती हूँ मैं.....
नज़र भर कर देख लूँ जिसको,
उसे अपना बना सकती हूँ मैं.....
जज्बा तो वो रखती हूँ,                                                         
की पार पर्वत भी कर सकती हूँ मैं....
कभी देखना सागर की गहराइयो में,
लहरों के साथ गहराइयो को भी
छू सकती हूँ मैं....
मेरे प्यार,मेरे समर्पण  को,
मेरी कमजोरी समझना 
मिट सकती हूँ किसी पर
तो मिटा भी सकती हूँ मैं....
खुद पर जाऊं तो
इस दिल को पत्थर भी बना सकती हूँ मैं...... 
जीत सको तो प्यार से जीत लेना मुझे,
प्यार में सब कुछ हार सकती हूँ मैं.....
कमजोर नही हूँ,मजबूर भी नही हूँ,
जिद्द पर जाऊं तो 
दुनिया भी बदल सकती हूँ मैं..... 
यूँ ही कुछ लिखते-लिखते 
इतिहास भी रच सकती हूँ मैं......
औरत हूं कुछ भी कर सकती मैं....!!!
सुनीता मिश्रा, जमशेदपुर