टी टी कैसा होता है? - अर्चना पांडेय अर्चि

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vivratidarpan.com - जब मैं पाँच वर्ष की थी तो बनारस घूमने गई, साथ में मेरी मामी फुलपरी मिश्र, मेरी माँ और कुछ लोग थे। टिकट बनाने की जिम्मेवारी मेरी मामी ने अपने छोटे भाई राघव मामा को दी थी। उन्होंने सबका टिकट बनाया लेकिन मेरा नहीं। उनको मेरा ख़्याल ही नहीं आया। सभी ने कहा कोई नहीं , जब टीटी आएगा तो रूबी को हम सभी छुपा देंगे। सभी ने कहा ठीक है, ठीक है। ठंड का मौसम है इसलिए टीटी आने के समय हम सभी रूबी को ढक देंगे, सभी ने निश्चय किया। लेकिन मुझे क्या पता ये टीटी भला क्या होता है?

ट्रेन में हमारे घरवाले खूब मस्ती करते हुए जा रहे थे। हाहा- हीही और बीच में ठहाके भी लगा रहें  थे। पर मेरे मुख पर हँसी ही नहीं थी मैं तो इसी सोच में थी भला टीटी कैसा होता है? मुझे अजीब लग रहा था। काफी रात हो गई थी। फिर भी मेरी आँखों में नींद नहीं। मुझे तो टीटी को देखना था। आखिर टीटी क्या होता है?....ठंड होने की वजह से सभी ने अपने आप को ढक रखा था।

तकरीबन ग्यारह बजे रात को टीटी के आने की सुगबुगाहट हुई। सभी ने कहा रूबी को ढक दिया जाए अच्छे से। पहले तो मेरा शरीर ही ढका हुआ था अब चेहरा भी ढक दिया। पर मुझे तो टीटी को देखना है आखिर टीटी होता क्या है?

टीटी अब हमारे कम्पार्टमेंट में आ गया। मामी ने टिकट दिखाया। टीटी ने लोगों की संख्या पूछी। अब तो मेरे अंदर अजीबोगरीब ख़्याल आने लगे। अब सब्र का बांध टूट गया और टीटी को देखने के लिए मैंने चेहरे से कपड़े को हटा दिया और उठ कर बैठ गई। सभी लोग निःशब्द!.... अब मैं टीटी को एकटक निहार रही थी। मेरे सारे भरम दूर हो गए थे।

टीटी ने मेरी तरफ इशारा करते हुए पूछा ये कौन है?

कोई उत्तर दे... उससे पहले मैंने ही जवाब दे दिया, रूबी।

फिर उसने मुझसे मेरी उम्र पूछी मैंने झट से सात बता दी।

उसने पूछा - रूबी तुम्हारा टिकट तो नहीं है।

फिर घरवालों से पूछा, सभी बुत बनें थे। मेरा टिकट न होने की अभाव में उसने मेरी माँ से बीस रुपए लिए। ये घटना आज भी मुझे गुदगुदा जाती है। मेरी यह रेलगाड़ी की यात्रा अविस्मरणीय है।      - अर्चना पांडेय अर्चि, तिनसुकिया, असम