समग्र जीवन = ज्योत्स्ना रतूड़ी

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           रागविराग रहित जीवन निश्चल हो,
         पारदर्शी व जल सा विमल हो,,
      बढ़ते रहें जीवन में आगे,
    न सोचे क्या प्रतिफल हो।

निर्बल के संबल बन जाएं,
    जीवन में सुरभि बरसाएं,
         निहारे जग निर्निमेष होकर,
             आचरण में सहजता लाएं।

           आसमान सम रखो विचार,
       संकीर्णता का करो प्रतिकार,
    नेत्र बंद कर लो उच्छवास, 
जब न दिखे कोई उपचार।
= ज्योत्स्ना रतूड़ी ज्योति, उत्तरकाशी ,उत्तराखंड