हिंदी भाषा राष्ट्रीय धरोहर है - मीणा तिवारी

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आज सुबह सुबह लगा,

किसी ने दरवाजा खटखटाया,

मैं सोच में,

कौन आया ?

नीद की गोद मे,

अलसाई सी,

खोई हुई,

सोचा मैंने,

शायद धोखा हुआ,

फिर से कोशिश,

करने लगी,

सुबह के पांच बजे थे।

पुनः खटखटाहट से,

बड़बड़ाते हुए,

मैं जबरजस्ती बदन को,

उठाकर दरवाजे के पास पहुँच,

झाँक कर

पूछा?

कौन हो तुम ?

क्यो आई हो ?

क्या चाहती हो ?

क्यो जगाया सुबह सुबह ?

तुमको पता नही,

मेरे पास वक्त नही,

विदेशी कंपनी में काम करती हूं,

समय का अभाव है,

जल्दी बताओ,

क्या बात,,,,,

वो बोली,,,,,

मुझे नही जानती ?

तुम्हारी राष्ट्र भाषा हिंदी,

तुम्हारे देश का मान,

नही जानती क्या ?

आज हिंदी दिवस है।

मेरा स्वागत नही करोगी ?

हाँ शायद तुम पहचानती नही,

याद आया तुमको तो आती नही हिंदी,

कुछ टूटी फूटी,

लफ्जो में ,

तैर जाती हूं,

जुबा पर,

इसीलिए तो बन गई,

मेहमान आज की,

सिर्फ एक दिन की,

बस विनती करने आई,

सिखाना अपने नौनिहालों को

हिंदी भाषा का मान सम्मान करना।

हिंदी हिदुस्तान की है शान,

हमारी अमूल्य धरोहर,

संस्कारो की खान,

जो बनाती महान,

अच्छा अब चलती हूँ,

गौर करना,

जाना है,

बहुत जगह,

सोई हिंदी को जगाने,

उनको आजमाने,

जो समझते,

खुद को सयाने,

मैं सोचती रह गई,

सच आधुनिकता की दौड़ में,

शायद राष्ट्रीय धरोहर का,

हास हो रहा,

मुझे जगना होगा,

जागृति के लिए

- मीणा तिवारी, पुणे,  महाराष्ट्र