दिल सोचता रहता है - विनोद निराश

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तुम्हारे जाने के बाद,

शुष्क काष्ठ जैसी देह,

विरक्त होता मन ,

जीवन पथ पर चलता अकेला तन ,

देखकर दिल सोचता रहता है।

कभी तुम्हारी सम्मोहिनी मुस्कान,

उरअंतस में नेह जगा जाती थी,

तुम्हारी मोहिनी सी बाते ,

मन को मोह लिया करती थी,

सोचकर दिल सोचता रहता है।

वो अबोले से नयन,

सब कुछ कह जाते है  ,

रात के सन्नाटे सी ख़ामोशी ,

अनकहे शब्द कह जाती है। 

सुनकर दिल सोचता रहता है।

आज स्वप्न में भी कतराते हो,

पल भर में अदृश्य हो जाते हो।

कभी नयनो की भाषा पढ़ लेते थे ,

आज तुम्हारी बेरुखी निराश मन को सताती है।

याद कर दिल सोचता रहता है।

- विनोद निराश , देहरादून