क्या नया साल यह आया है - जसवीर सिंह हलधर

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क्यों राह फिरंगी डोल रहे,

क्या नया साल यह आया है ?

क्यों विश्की सोडा घोल रहे ,

क्या नया साल यह आया है ?

सर्दी में कुहरा छाया है ,

मौसम में ठिठुरन भरी हुई ।

सब खग मृग दिखते डरे डरे,

किरणें भी लगती डरी हुई ।

सहमा सहमा सा चांद दिखे,

दिनकर भी तो तैयार नहीं ।

ढो रहे गुलामी कंधो पर ,

 है अपना यह त्योहार नहीं ।

क्यों उल्टी राह टटोल रहे ,

क्या नया साल यह आया है ?

ठिठुरन का राज सिमटने दो,

जब पतझड की अगुवाई हो ।

फागुन का रंग बिखरने दो ,

सूरज में भी गरमाई हो।

कलियों को और सँवरने दो ,

जब बागों में अमराई हो ।

बालों में दाने भरने दो ,

फसलों में भी तरुणाई हो ।

क्यों संस्कृती को छोल रहे ,

क्या नया साल यह आया है ?

चैती माँ का परवाना ले,

यूँ साल नया आने वाला ।

कोयल का राग सुहाना ले,

यूँ साल नया आने वाला ।

हर जीव जन्तु का दाना ले,

यूँ साल नया आने वाला ।

धरती में छुपा खजाना ले,

यूँ  साल नया आने वाला ।

हम तथ्य सत्य के तोल रहे ,

क्या नया साल यह आया है ?

शक संवत के परिमापों से ,

 नव वर्ष मनाया जाएगा ।

 पहले ही दिन माँ दुर्गा का,

 नव गीत सुनाया जाएगा ।

वेदों का ज्ञान दिया हमने ,

उसका तो थोड़ा मान रहे ।

नव वर्ष हमारा सदा मने ,

दुनियाँ भर में सम्मान रहे ।

हलधर" गुरवाणी बोल रहे ,

क्या नया साल यह आया है ?

- जसवीर सिंह हलधर, देहरादून