बालिकाये सरल हृदय की होती है - कलिका प्रसाद

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बालिका सरस्वती की वाणी  होती है,

बालिका ही दुर्गा कल्याणी होती है।

बालिका को जब मिला अवसर,

बालिका ने बन कर दिखाया अफसर।

बालिका अंतरिक्ष  में चली गई है,

बालिका ने सागर की गहराई नाप दी।

बालिका रामायण गीता होती  है,

बालिका कहानी और कविता होती है।

बालिका का कोई धमका नहीं सकता,

बालिका को कोई डरा नहीं  सकता।

बालिका  गंगा यमुना  जैसी होती है,

बालिका  स्नेह  की मूरत होती है।

बालिका ने अपनी ताकत पहचान ली,

बालिका ने भ्रान्तियों को मिटा दिया है।

बालिका की किलकारी मिश्री होती है,

बालिका ठुमक-ठुमक  कर चलती है।

बालिका हिमालय सी धवल होती है,

बालिका सरोबर सी शांत होती है।

बालिका फूलों की खूशबू सी होती है।

बालिका मखमली बुग्याल होती है।

बालिका घर में खुशियां लाती है,

बालिका घर के कार्यो में हाथ बटाती है।

बालिका सरल हृदय की होती है,

बालिका बाबुल की परी होती है।

बालिका भोर की गुनगुनी धूप होती है,

बालिका  दो घरों की लाज होती है।

बालिका फूल सी कोमल होती है,

बालिका सरल हृदय वाली होती है।

- कालिका प्रसाद सेमवाल

मानस सदन अपर बाजार,रुद्रप्रयाग (उत्तराखंड)