ग़ज़ल - विनोद निराश

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बात दिल की उन्हें सुनाते रहे,

हम भी अख़लाक़ से जाते रहे।

इश्क़ का सफर तो मुश्किल था,

राहे-इश्क़ में धमाल मचाते रहे। 

जब बात चली हिज़्रे-यार की,

बेखुदी में ख्वाब सजाते रहे।

न हुए कभी भी उनसे बेखबर,

खुद को हमसे जो बचाते रहे।

उस लहजे की रवानी बाखुदा,

कदम-दर-कदम गिनाते रहे।

दफ़अतन तेरा दिल से जाना,

खुद रोये औरों को हँसाते रहे।  

तमाम रात तुझे याद कर-कर, 

ख्वाब तेरे निराश सजाते रहे।

- विनोद निराश , देहरादून