ग़ज़ल - विनोद निराश
Jan 1, 2022, 22:36 IST
| क्या बताऊँ हाल तुम्हे गुजरे साल के ,
ले गया कोई मेरा कलेजा निकाल के।
मैं जख्मो को गिन रहा हूँ अब तलक,
वो मुस्कुरा रहे चेहरे पे जुल्फे डाल के।
बड़ी मुश्किल डगर होती है मुहब्बत की,
रखना कदम राहे-इश्क़ में देखभाल के।
काँच से नाजुक होते है रिश्ते प्यार के ,
कहीं बिखर न जाए रखना संभाल के।
इस अदा से बिछुड़ा खबर तक न हुई,
न पूछ सितम हुस्न-ए-बेमिसाल के।
ज़िक्र क्या करूँ निराश अब हिज़्रे-यार,
दिन रात ख्याल आते है बेख्याल के।
- विनोद निराश , देहरादून