ग़ज़ल - विनोद निराश

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जाता दिसम्बर रुलाएगा मुझे,

अब न शायद वो बुलाएगा मुझे।

उम्र भर चाहा जिसको हमने ,

सर्दी की तरहा सताएगा मुझे।

गुनगुनी धूप में आके छत पे,

सर्द मौसम में जलाएगा मुझे।

झाँक कर जुल्फों के दरिचे से,

मुहब्बत फिर जतायेगा मुझे।

देख कर हालते-दिले-निराश,

हमदर्द अपना बताएगा मुझे।

- विनोद निराश, देहरादून