ग़ज़ल - विनोद निराश
Dec 31, 2021, 23:06 IST
| जाता दिसम्बर रुलाएगा मुझे,
अब न शायद वो बुलाएगा मुझे।
उम्र भर चाहा जिसको हमने ,
सर्दी की तरहा सताएगा मुझे।
गुनगुनी धूप में आके छत पे,
सर्द मौसम में जलाएगा मुझे।
झाँक कर जुल्फों के दरिचे से,
मुहब्बत फिर जतायेगा मुझे।
देख कर हालते-दिले-निराश,
हमदर्द अपना बताएगा मुझे।
- विनोद निराश, देहरादून