ग़ज़ल - विनोद निराश
Dec 24, 2021, 22:56 IST
| करके वफ़ा मैं बदनाम हो गया ,
बेखुदी में ये कैसा काम हो गया।
जानता न था कोई तुझसे पहले,
आजकल तो बस आम हो गया।
करके उल्फत तुझसे क्या मिला,
गुरूर मेरा आज तमाम हो गया।
इश्क़ को इबादत समझा मगर ,
जाने क्यूँ जुदाई अंजाम हो गया।
तोडा जब उसने रिश्ता-ए-वफ़ा ,
निराश रुसवा सरेआम हो गया।
- विनोद निराश , देहरादून