ग़ज़ल - विनोद निराश
Dec 20, 2021, 22:38 IST
| मुझे है इश्क़ तुझसे ही, तेरा इकरार बाकी है,
जो छुपा रखा था अब तक, वो प्यार बाकी है।
तू मेरा हो या न हो, ये तेरी मर्ज़ी पे सनम,
तुझे चाहा है मैंने , तेरा अधिकार बाकी है।
तू लाख कर नफ़रत मुझसे मैं प्रेम करता हूँ ,
लबों पे तेरे तबस्सुम का, इंतज़ार बाकी है।
खर्च की है बहुत रातें, तेरे लिए जाग कर ,
बस कमल नयनो से, तेरा इज़हार बाकी है।
खबर बन गया इश्क़ मेरा, गलियों की तेरी ,
बनना अब मेरा भी, इक इश्तहार बाकी है।
कर के आ गया बगावत, वास्ते तेरे निराश ,
तेरी जानिब से प्यार का, अभिसार बाकी है।
- विनोद निराश , देहरादून