ग़ज़ल = विनोद निराश

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क्या बताये क्या ज़िंदगानी है ,
कभी किस्सा कभी कहानी है। 

बूँद बूँद को तरसे कभी मन,
तो कभी अश्कों की रवानी है।
 
दिल है गमजदा तो क्या,
हसरत-ए-दिल शादमानी है।

ज़िंदगी बेरंग सी लगती है पर, 
मिज़ाज़ अपना भी जाफरानी है। 

उसने कई बार मायूस किया,
मगर कई बात मेरी मानी है।
 
उसकी सादादिली देख के ही ,
दिल-ए-निराश पे जवानी है। 
= विनोद निराश , देहरादून