गजल - ऋतु गुलाटी 

 | 
pic

जी नही पाती अगर, हाथो मे हाथ तेरा न होता।

सह लेती सब कुछ, गर मौंत का फरमां न होता।

थक गयी हूँ अब  सुनाकर दास्तां जमाने को।

जँचता नही किस्सा, बेवफाई का गर मेरा न होता।

गम की इस किश्ती मे डूबना होगा बेशक अब।

गर मिलने को किनारा हो, साहिल डूबा न होता।

रखते  हैं शेर दिल, डरते कहाँँ वो अब जमाने से।

सह लेते है जमाने के गम, झुकना गँवारा न होता।

बिना मेहनत किये मनुज को, कुछ नसीब न होता।

आता हुआ मुँह का कौर भी, ऋतु नसीब न होता ।

रीतूगुलाटी. ऋतंभरा, हिसार, हरियाणा