गजल - ऋतु गुलाटी
Updated: Jul 14, 2021, 23:58 IST
| जी नही पाती अगर, हाथो मे हाथ तेरा न होता।
सह लेती सब कुछ, गर मौंत का फरमां न होता।
थक गयी हूँ अब सुनाकर दास्तां जमाने को।
जँचता नही किस्सा, बेवफाई का गर मेरा न होता।
गम की इस किश्ती मे डूबना होगा बेशक अब।
गर मिलने को किनारा हो, साहिल डूबा न होता।
रखते हैं शेर दिल, डरते कहाँँ वो अब जमाने से।
सह लेते है जमाने के गम, झुकना गँवारा न होता।
बिना मेहनत किये मनुज को, कुछ नसीब न होता।
आता हुआ मुँह का कौर भी, ऋतु नसीब न होता ।
रीतूगुलाटी. ऋतंभरा, हिसार, हरियाणा