ग़ज़ल- डॉ. अशोक ''गुलशन''

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तुम्हारी याद में जब अश्क बनकर आ गये बादल,

हमारी आँख से बाहर निकलकर आ गये बादल।

हमें तन्हा जो पाया तो हमारे पास आ करके,

लिपटने को हुए आतुर मचलकर आ गये बादल।

हमारी आँख जो सूखी तो बादल बन गये बादल,

छुपे थे ये कहाँ देखो घुमड़कर आ गये बादल।

अभी तक थे ये आँखों में अचानक हो गये गायब,

तुम्हें भूला तो देखो फिर पलटकर आ गये बादल।

कभी रूठे जो सागर से तो करने को हमें पागल,

हमारे गाँव में ‘गुलशन’ भटककर आ गये बादल।

- डॉ. अशोक ''गुलशन'', उत्तरी कानूनगोपुरा, बहराइच (उ०प्र०)