ग़ज़ल- डॉ. अशोक ''गुलशन''
Dec 22, 2021, 23:24 IST
| तुम्हारी याद में जब अश्क बनकर आ गये बादल,
हमारी आँख से बाहर निकलकर आ गये बादल।
हमें तन्हा जो पाया तो हमारे पास आ करके,
लिपटने को हुए आतुर मचलकर आ गये बादल।
हमारी आँख जो सूखी तो बादल बन गये बादल,
छुपे थे ये कहाँ देखो घुमड़कर आ गये बादल।
अभी तक थे ये आँखों में अचानक हो गये गायब,
तुम्हें भूला तो देखो फिर पलटकर आ गये बादल।
कभी रूठे जो सागर से तो करने को हमें पागल,
हमारे गाँव में ‘गुलशन’ भटककर आ गये बादल।
- डॉ. अशोक ''गुलशन'', उत्तरी कानूनगोपुरा, बहराइच (उ०प्र०)