ग़ज़ल = अनुश्री

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यूँ कभी आशकार हों आँखें,

इश्क़ का इश्तिहार हों आँखें

मुद्दतों बाद उसको देखा है,

क्यूँ न फिर अश्क़बार हों आँखें

सबकी आँखों के ख़्वाब बुन पायें,

काश वो दस्तकार हों आँखें

तेरी आमद पे खिल ही जाती हैं,

कितनी भी सोगवार हों आँखें

डूब कर इश्क़ में जो मर जायें,

फिर मेरी शाहकार हों आँखें

..= अनुश्री, कानपुर (उत्तर प्रदेश)