ग़ज़ल =अनिरुद्ध कुमार

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प्रीत भुलाना खेल नहीं है,

माना दिल का मेल नहीं है।

            

ख्यालों ख्वाबों में जाते,

जीवन यह नटखेल नहीं है।

              

हरपल सोंचे आँखें मीचे,

मन ये मंदिर जेल नहीं है।

               

तोड़ दिये सब बंधन सारे,

इस दीपक में तेल नहीं है।

              

हद की भी हदबंदी होती,

यह बंधन अठखेल नहीं है।

               

जीवन चलता अपने धूरी,

इसको जानें झेल नहीं है।

                

सच्ची बातें अनि कहता है,

प्यार समझ बेमेल नहीं है।

= अनिरुद्ध कुमार सिंह, धनबाद, झारखंड