गीतिका सृजन (चौपाई छंद) - मधु शुक्ला

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छल ने जब स्वांग रचाया है,

झूठे ने नाम कमाया है।

छवि लोकतंत्र की लख पावन,

सठ राजतंत्र गुर्राया है।

वादों का चक्र चला कर के,

बगुलों ने महल बनाया है।

कौए बैठे हैं पंगत में,

हंसों को व्रत रखवाया है।

षड्यंत्रों का ताना बाना,

जनता को खूब छकाया है।

धर्म मौन बैठा कोने में,

रक्षक ने भ्रम फैलाया है।

चुभने वाले रिश्ते त्यागो,

गीता में यही बताया है।

मधु शुक्ला. आकाश गंगा नगर.,

 सतना, (मध्यप्रदेश)