दिल्लगी =  ज्योत्स्ना रतूड़ी

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करते हैं दिल्लगी वो,
होते हैं मजाकिया जो,
दिल्लगी न पड़ जाए महंगी,
करो गर तुम दिल्लगी जो।
करते हुए दिल्लगी कभी,
बस ध्यान रखना यह सभी,
खेलना न भावनाओं से तुम,
दिल्लगी करो तुम जब भी।
इस दिल्लगी से ही कई,
अवसाद में गए हैं भई,
बांध लेना अब यह गांठ ,
नहीं दिल्लगी है बिल्कुल सही।
दिल्लगी तुम करो अगर,
मूर्ख कभी न बनाना मगर,
देते चलो तुम सम्मान सबको,
सच की है बस यही डगर।
 = ज्योत्स्ना रतूड़ी *ज्योति *
 उत्तरकाशी, उत्तराखंड