धवल कुमुदिनी - किरण मिश्रा
वो फिर ...यूँ
मिलें..
की उग आये
मेरे मनस पाटल पर...
फिर कोई रूहानी कविता....
लिखूँ मैं
फिर अलसाई भोर के
पलकों पर
होंठो की रोशनाई से
चहकती चिड़ियों का कलरव...
गालों पर खिल उठे
रक्तिम पलाश...
झर उठे वाणी से हरसिंगार
पीत अमलतास,
और गुलमोहर की चूनर ओढ़....
नाच उठे फिर धरा की गोद......
हृद वीणा के तार कस,
गिरि, कानन, निर्झर, उपवन,
झूम-झूम गायें
फिर नवल मिलन के मधुरिम गीत,
फिर महके
हर स्वप्नीली
शाम मोगरा सी ,
दूर क्षितिज की शय्या पर
डूबते सूरज के
अंकपाश में बंध
लजा उठूँ मैं शर्मीली सन्ध्या सी
सुनो ...
रात्रि का आँचल
ओढ़ के बैठी हूँ
तुम्हारी पैरहन में....
कोमल, शीतल, स्निग्ध
तुम्हारे दर्शन की उत्कन्ठा लिए
आओ कँवर...🌹
पोर पोर छूकर
विगलित कर दो मेरे
तृण तृण में अपना
मृदुल ,शबनमी, नेह
साँसे ले उठें,
मेरे रक्तिम धवल पाटल,
मेरे तन्तुनाल में ,
संचार मान हो जाये
फिर नव जीवन
नव कलिका
नव वधू सी ,
शोभायमान हो जाये
फिर तेरे अंकताल में....
ये स्नेहिल धवल कुमुदनी🌹🌹
- किरण मिश्रा #स्वयंसिद्वा नोयडा