देव प्रतिमा - किरण मिश्रा
Dec 23, 2021, 22:40 IST
| अरमानों की देगची में ...
मैंने...चढ़ा दिये है...
सारे अहसास
दर्द ..पकने को है..
ज्वालामुखी के लावे से..जज्बात
उबलकर बहने लगे हैं !
उन...पर छिड़क
गंगाजल सदृश
पवित्र अश्रुकणों की कुछ बूँदें,
अभिमंत्रित कर लिया है
मैंने खुद में, तुम्हारा प्रेम...!
और अब...
तुम्हारी यादों के हवनकुंड में
डालती रहती हूँ प्रतिदिन,
हविष से,
कुछ उद्गारों के शब्द पुष्प
चारो पहर...!
नेह-कविताओं से
तिलक लगा
उतारती हूँ तुम्हारी
भाव भीनी आरती
आहों की घन्टी बजा.......
उन्मुक्त छन्दों से करती हूँ
नित ...भोर सांझ
तुम्हारा जयघोष.......!
मेरा जिस्म
अब मंदिर हो गया.....
और तुम मेरी रूह में बसी
"देव प्रतिमा"
तुम सुन रहे हो न..
बाकें बिहारी....
हाँ वही...प्रस्तर की
जो पुरातन पूजागृहों में
आज भी अखन्ड विराजमान है..!!.
किरण मिश्रा "स्वयंसिद्धा", नोएडा