दोहे-(साड़ी वाली नार) = शिप्रा सैनी

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अब गलियों  में दिखती,साड़ी वाली नार।

उत्सव समारोह हो , तो साड़ी बेकार।

यह आज की नारी से ,नहीं सँभाली जाय।

दौड़ भाग में आज की, नित ही सरकी जाय।

पाश्चात्य परिधान में,नारी अब इतराय।

छोटे बड़े शहरों में, मॉर्डन वो कहलाय।

पहनें रोज इसे नहीं , पर साड़ी से प्यार।

सूना है इसके बिना , हाँ सोलह श्रृंगार।

साड़ी पहने नार जो , है भारत की शान।

विश्व में सुंदर सबसे,भारत का परिधान।

= शिप्रा सैनी (मौर्या), जमशेदपुर