छंद - (तुकांत आवृत्ति) - जसवीर सिंह हलधर

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हाड़ मांस गगरी में , लहू रूपी जल भरा,

मिलना है खाक में या ,जलना है आग में ।

चाहे वरदान मान ,चाहे अभिशाप मान ,

जिंदगी का लक्ष्य छुपा, हुआ आग आग में ।।

कोई मानता है मजा , कोई मानता है सजा ,

मंद मंद प्राण जले , आग आग आग में ।

नथुनों की फूंकनी से,फेफड़ों की धोंकनी में ,

देह को मिलाये आग , आग आग आग में ।।

- जसवीर सिंह हलधर, देहरादून