छंद - (तुकांत आवृत्ति) - जसवीर सिंह हलधर
Jan 7, 2022, 22:48 IST
| हाड़ मांस गगरी में , लहू रूपी जल भरा,
मिलना है खाक में या ,जलना है आग में ।
चाहे वरदान मान ,चाहे अभिशाप मान ,
जिंदगी का लक्ष्य छुपा, हुआ आग आग में ।।
कोई मानता है मजा , कोई मानता है सजा ,
मंद मंद प्राण जले , आग आग आग में ।
नथुनों की फूंकनी से,फेफड़ों की धोंकनी में ,
देह को मिलाये आग , आग आग आग में ।।
- जसवीर सिंह हलधर, देहरादून