आकांक्षाएं (मुक्तक) = रीतू गुलाटी.

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आधुनिकता का ओढ कर लबादा जी रहे है।

लिये ढेरो आकांक्षाएं, मन ही मन पी रहे है।

मेहनत करते आती है शर्म, पढे लिखे को-

आकांक्षाओ से बस दामन अपना सी रहे हैं।

बुरा नही आकांक्षाओं को मन मे पालना।

पूरी करने के लिये पढता है खुद को ढालना।

होना पड़ता है कुंदन,आग मे  जलाकर हमें-

आसान न होता आकांक्षाओं को सम्भालना।

= रीतू गुलाटी. ऋतंभरा, हिसार,  हरियाणा